बिहार में अक्तूबर-नवंबर तक विधानसभा चुनाव हैं और राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. नेताओं की मेल-मुलाकातों का दौर तेज हो गया है. एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. वहीं, एक अन्य केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने भी संगठन को एक्टिव मोड में लाने के लिए कार्यकर्ता बैठक की. विपक्षी महागठबंधन में बैठकों के बीच तेजस्वी यादव ने समीक्षा बैठक की. बैठकों के दौर में राजनीतिक गुणा-गणित की चर्चा तो हो ही रही है, बात पॉकेट पॉलिटिक्स को लेकर भी हो रही है.
बिहार जैसे बड़े राज्य में राजनीति का मिजाज भी हर जगह एक जैसा नहीं है. किसी इलाके में जो मुद्दे प्रभावी हैं, दूसरे इलाके में वह मुद्दा ही नहीं है. कहीं बाढ़ बड़ा मुद्दा है तो कहीं सूखा, कहीं पलायन तो कहीं घुसपैठ. बिहार सीरीज में आज बात करेंगे नेपाल की सीमा से सटे इलाकों की पॉलिटिक्स की. बिहार के सात जिले पड़ोसी देश नेपाल के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. ये जिले कौन से हैं, इन जिलों में कितनी विधानसभा सीटें हैं और यहां के मुद्दे क्या हैं? आइए, नजर डालते हैं.
नेपाल की सीमा से सटे जिलों में 54 सीटें
बिहार के सात जिले नेपाल के साथ सीमा साझा करते हैं. इनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी के साथ ही मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज शामिल हैं. विधानसभा सीटों के लिहाज से बात करें तो पश्चिम चंपारण जिले में नौ, पूर्वी चंपारण में 12, सीतामढ़ी में आठ, मधुबनी में 10 विधानसभा सीटें हैं. अररिया में छह, किशनगंज में चार और सुपौल में पांच विधानसभा सीटें हैं. कुल मिलाकर देखें तो 243 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा की 54 सीटें इन सात जिलों में ही हैं. नेपाल सीमा से सटे इलाके कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करते थे. बाद में ये सात जिले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बैटल ग्राउंड में बदल गए.
सीमावर्ती जिलों में मुद्दे क्या हैं?
नेपाल की सीमा से सटे बिहार के जिलों में सियासी मुद्दे भी अलग हैं. यहां घुसपैठ, बदलती डेमोग्राफी से लेकर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधियां मुद्दा रही हैं. पिछले बिहार चुनाव से कुछ ही महीने पहले आई इंटेलीजेंस रिपोर्ट में बिहार से लगती नेपाल सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधियां बढ़ने की बात कही गई थी. इसी खुफिया रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि इन इलाकों में बड़ी संख्या में मस्जिदें और गेस्ट हाउस उभर आए हैं जिनकी फंडिंग पाकिस्तानी संगठन दावत-ए-इस्लामिया करता है.
घुसपैठ
नेपाल से सटे इलाकों में घुसपैठ बड़ी समस्या के रूप में उभरा है. सुरक्षा एजेंसियां भी इस पर चिंता जाहिर कर चुकी हैं. नेपाल की खुली सीमा के रास्ते बांग्लादेश और पाकिस्तान के अवांछनीय तत्व बिहार में प्रवेश करने में सफल हो जाते हैं. इसकी वजह से सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी भी बदल रही है.
ड्रग्स तस्करी
नेपाल के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा से ड्रग्स के साथ ही नकली नोट की तस्करी की घटनाएं भी सीमावर्ती इलाकों में बड़ा मुद्दा हैं. कई बार सीमा पर ही यह खेप पकड़ी भी जाती है लेकिन असल समस्या यह है कि 600 किलोमीटर से भी लंबी बिहार से लगती सीमा खुली है. इसमें बड़ा भूभाग ऐसा है, जहां खेत हैं, नदियां हैं. तस्कर तस्करी के लिए मुख्य मार्ग की जगह इन इलाकों का अधिक उपयोग करते हैं.
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अतिक्रमण
सीमावर्ती इलाकों में अतिक्रमण जैसे मुद्दे भी हैं. अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब नौ मेंस लैंड में नेपाली नागरिकों को जमीन आवंटित किए जाने का मुद्दा भी समय-समय पर उठता रहा है. कुछ समय पहले नेपाल पुलिस की फायरिंग में एक युवक की मौत से भी माहौल गर्म हो गया था. जमीन से लेकर पुलिस के अधिकार तक, अतिक्रमण बड़ा मुद्दा है. कई इलाकों में तो पिलर गायब हैं और इसकी वजह से लोगों के लिए यह अनुमान लगा पाना भी कठिन हो जा रहा है कि वह बिहार में ही हैं या नेपाल में.
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अपराध
नेपाल की सीमा से सटे इलाकों में अपराध भी बड़ा मुद्दा है. बिहार और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का संबंध है. बड़ी संख्या में लोगों की रिश्तेदारियां सीमा के उस पार भी हैं. ऐसे अपराधी आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने के बाद आसानी से सीमा पार जाकर छिपने में सफल हो जाते हैं.