शांति और साधना के उत्सव का गवाह बनेगी दिल्ली, राजधानी में होने जा रहा भारत योग यात्रा का आयोजन
सिर्फ एक शब्द बदलकर रोमांटिक गाने को बना दिया था भजन... ऐसे ही नहीं 'ठुमरी की रानी' थीं गिरिजा देवी
कहानी सिंदूर की...सुहाग का वो निशान, जो बन गया आतंक के आकाओं से भारत के बदले की पहचान
भामाकलापम" कुचिपुड़ी नृत्य शैली का एक अनमोल रत्न है, जो अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति और जटिल नृत्य संरचनाओं के लिए जाना जाता है. यह नृत्य-नाटिका भक्ति, प्रेम और मानवीय भावनाओं को सुंदरता से दर्शाती है. यह आयोजन नृत्य प्रेमियों और कला की परख करने वाले और शास्त्रीय नृत्य परंपरा को कायम रखने वाले पारखियों के लिए एक यादगार अनुभव होने वाला है.
इस शाम का जिक्र ही इस आयोजन की आत्मा है, चेतना है. भारतीय परिवारों में शाम की गोधूलि बेला का समय संध्या वंदन का होता है और गोधूलि के पवित्र समय को और पावन बना दिया नृत्यांगना मधुरा भ्रुशुंडी ने. यंग डांसर्स फेस्टिवल में वह एक उभरते सितारे के तौर पर स्टेज पर आईं और दर्शकों को अपनी भरत नाट्यम की विशेष प्रस्तुति से मंत्रमुग्ध कर दिया.
रंजना गौहर के प्रदर्शन उनकी छऊ, कथक और मणिपुरी नृत्य की ट्रेनिंग को दर्शाते हैं. उन्होंने "ओडिसी, द डांस डिवाइन" नामक किताब भी लिखी है और ओडिसी व अन्य नृत्य रूपों को बढ़ावा देने के लिए वृत्तचित्रों का निर्माण किया है. उन्होंने प्रसिद्ध गुरु मायाधर राउत के अधीन प्रशिक्षण लिया और उनके पास दर्शनशास्त्र और अंग्रेजी साहित्य में डिग्रियां हैं.
नृत्यांगना शोभना नारायण शृंगार के गहरे अर्थ पर रौशनी डालते हुए कहती हैं कि, “शृंगार, मेरे लिए, केवल एक कलात्मक रूप नहीं है. यह जीवन की धड़कन है, एक ऐसी भाषा है जो सीधे दिल से बात करती है. शृंगार एक ऐसा भाव है, जो वहां भी मौजूद है, जहां कुछ नहीं है. यह विलोपन, यह वियोग भी शृंगार का ही एक पक्ष है. इसके कैनवस को प्रेम, संयोग-वियोग, राग-द्वेष के बजाय और बड़ा व विस्तृत करके देखने की जरूरत है.'
कथक की कला में विशेष रूप से इसकी कहानी कहने की शैली में सहज अभिव्यक्ति (इम्प्रोवाइजेशन) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कथक कलाकार कहानी की भावनात्मक टेंडेंसी को न सिर्फ मंचन के दौरान आत्मसात कर पाते हैं, बल्कि जब वे अपने मानसिक चित्रों को मंच पर भाव के जरिए गढ़ रहे होते हैं तब, वह चेहरे के भावों और शारीरिक मुद्राओं के जरिए उन्हीं भावों को अंदर से बाहर भी लाते हैं. सहज अभिव्यक्ति की सबसे चुनौती पूर्ण शैलियों में से एक है बैठक. इसे कथक का बैठकी भाव भी कहते हैं.
मौका था, उत्सव एजुकेशनल एंड कल्चरल सोसाइटी द्वारा आयोजित और पद्मश्री व संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुरु रंजना गौहर की शिष्याओं द्वारा ‘नृत्य मोहा’ की प्रस्तुति का. ओडिसी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति ने दर्शकों पर ऐसी सम्मोहिनी शक्ति चलाई कि, 21वीं सदी का मौजूदा जनसमूह समय में पीछे की ओर सफर करते हुए शताब्दियों के प्राचीन सफर पर निकल पड़ा.
अभी हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के मुखबा गांव पहुंचे थे तो उनका स्वागत तांदी गीत और नृत्य से हुआ. पारंपरिक वेशभूषा में सजे स्थानीय महिलाओं और पुरुषों ने रासो-तांदी के साथ पीएम को सम्मान दिया था. लेकिन क्या है यह तांदी? कैसे गाया और नाचा जाता है? कब और कहां होता है इसका आयोजन?
इस महोत्सव में लगभग 300 आदिवासी कलाकार अपनी कालातीत कृतियों और अनूठे शिल्प को भी लोगों के सामने प्रदर्शित कर रहे हैं. थिएटर, कला, कौशल और संगीत सबकुछ एक ही मंच और एक ही परिसर में मौजूद हैं और प्रवेश द्वार से एंट्री लेते ही आप कला की इस अनूठी दुनिया में रंग जाते हैं, साथ ही यह देखकर आश्चर्य होता है कि सदियों पहले जब मानव जीवन जंगल आधारित था तो भी उसके हाथ कितने कुशल थे.
जैसे हीर-रांझा, सोहनी-महिवाल हैं और शीरीं-फरहाद मशहूर हैं, वैसे ही रेतीली जमीन में प्यार के फूल खिलाए थे, ढोला और मारू ने. आज भी राजस्थान में नए दूल्हा-दूल्हन के जोड़े को ढोला-मारू की जोड़ी कह देते हैं. ढोला शब्द तो पति और प्रेमी का पर्यायवाची बन गया है. जानिए 'केसरिया बालम' गीत की कहानी
ग्राम यात्रा एक विशाल म्यूरल है, जो लगभग 14 फीट लंबी है. इसमें 13 दृश्यों में भारतीय ग्रामीण जीवन की झलकियां समाई हुई हैं. मीडिया बातचीत में सफ्रोनआर्ट के सीईओ और सह-संस्थापक दिनेश वज़ीरानी कहते हैं कि, "हुसैन की ग्राम यात्रा कई कारणों से एक महत्वपूर्ण कृति है. इसका विशाल आकार इसे अद्वितीय बनाता है.
'कंपनी पेंटिंग्स' पर केंद्रित इस प्रदर्शनी में गैलरी के अपने संग्रह से लगभग 200 कलाकृतियां प्रदर्शित हैं. इनमें 'एशियन फेयरी ब्लूबर्ड (इरेना पुएला)', 'ए ब्राउन स्क्विरल और ए ब्लैक स्क्विरल', 'जैकफ्रूट (आर्टोकार्पस हेटेरोफिलस)', 'चीनी का रोजा, आगरा', और 'पिलग्रिम्स एट ए रिवरबैंक' जैसी कृतियां शामिल हैं.
राजा रवि वर्मा को भारत का प्राचीन और सबसे उत्कृष्ट चित्रकार माना जाता है. आज देवी-देवताओं के जिन पौराणिक स्वरूपों को हम इतने सहज तरीके से कागज पर जीवंत हुए देखते हैं, इसका पहला प्रयास उन्होंने ही किया था. प्रख्यात चित्र देवी सरस्वती उन्होंने तकरीबन 1896 में बनाया था, लेकिन यह इतना आसान नहीं था.