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नीतीश कुमार के लिए चुनौती बन पाएंगे पीके और आरसीपी सिंह? दोनों के साथ आने से बने ये समीकरण

बिहार चुनाव से पहले बड़े सियासी घटनाक्रम में आरसीपी सिंह ने अपनी पार्टी का पीके की जनसुराज पार्टी में विलय कर दिया है. इन दोनों के साथ आने से बिहार में क्या समीकरण बन रहे हैं और यह जोड़ी सीएम नीतीश के लिए कितनी चुनौती बन पाएगी?

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आरसीपी सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर
आरसीपी सिंह, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिला. कभी नीतीश कुमार के खासमखास और जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने अपनी पार्टी आप सबकी आवाज (आसा) का प्रशांत किशोर (पीके) की अगुवाई वाली जन सुराज पार्टी में विलय कर दिया. आरसीपी सिंह ने करीब आठ महीने पहले ही ये पार्टी बनाई थी. जेडीयू के अध्यक्ष रह चुके आरसीपी और उपाध्यक्ष रह चुके पीके, दोनों ही कभी सीएम नीतीश के बहुत करीबी माने जाते थे. इन दोनों का साथ आना बिहार की सियासत का बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है.

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सीएम नीतीश कुमार से खटपट और जेडीयू से निकाले जाने के बाद आरसीपी पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए और फिर बाद में अपनी पार्टी बना ली. प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी के गठन का औपचारिक ऐलान किया था. इसके कुछ ही दिन बाद आरसीपी सिंह ने भी अपनी पार्टी बनाने की घोषणा की थी. उन्होंने यह ऐलान भी किया था कि आप सबकी आवाज पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी, लेकिन इसके बाद पार्टी की गतिविधियां कुछ खास नहीं नजर आईं. जेडीयू में कभी नीतीश कुमार के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह सूबे के राजनीतिक सर्कल में भी साइडलाइन से हो गए थे. जन सुराज में अपनी पार्टी का विलय करने के बाद आरसीपी फिर से सुर्खियों में आ गए हैं.

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आरसीपी के आने से पीके को क्या मिलेगा?

आरसीपी सिंह पूर्व नौकरशाह हैं. वह आईएएस अधिकारी रहे हैं, बिहार के प्रमुख सचिव रहे हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निकट रहकर काम कर चुके हैं. करीब दो दशक तक सीएम नीतीश कुमार की आंख और कान रहे आरसीपी सिंह लंबा प्रशासनिक अनुभव रखने के साथ ही मंत्री पद का अनुभव भी रखते हैं. आरसीपी सिंह संगठन के कुशल शिल्पी माने जाते हैं और सूबे के प्रशासनिक अमले में भी उनका मजबूत नेटवर्क है. यह आने वाले दिनों में पीके और उनकी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. आरसीपी और पीके, दोनों ही पहले भी साथ काम चुके हैं. साल 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश ने बतौर चुनाव रणनीतिकार पीके को हायर किया था और तब आरसीपी पार्टी में नंबर दो माने जाते थे.

जन सुराज पार्टी में आरसीपी का रोल क्या

जेडीयू से निकाले जाने के बाद आरसीपी सिंह सियासत में हाशिए पर ही रहे. बीजेपी में गए जरूर, लेकिन कुछ खास भूमिका मिली नहीं. अब वह पीके की पार्टी में आ गए हैं तो चर्चा इसे लेकर भी शुरू हो गई है कि जन सुराज में उनका रोल क्या होगा? आरसीपी सिंह के पास संगठन का लंबा अनुभव है, जो जन सुराज के काम आ सकता है.

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जन सुराज की स्थिति इस समय 'वन मैन आर्मी' जैसी है. यात्रा के जरिये बिहार में माहौल बनाने से लेकर संगठन तक, सब कुछ अकेले प्रशांत किशोर को ही हैंडल करना पड़ रहा है. चर्चा है कि आरसीपी सिंह को जन सुराज में बड़ी भूमिका सौंपी जा सकती है. पीके के साथ रणनीति तय करने से लेकर पार्टी के वॉररूम के संचालन तक, आरसीपी को जन सुराज में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है.

पीके को मिला ओबीसी चेहरा

आरसीपी सिंह नालंदा जिले के रहने वाले हैं. वह कुर्मी समाज से आते हैं, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) में आता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कुर्मी समाज से ही हैं. प्रशांत किशोर जन सुराज का सवर्ण चेहरा हैं और प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती के रूप में दलित चेहरा भी. अब आरसीपी सिंह के आ जाने से जन सुराज को ओबीसी फेस भी मिल गया है.

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आरसीपी सिंह की पककड़ कुर्मी, कोइरी, धानुक समाज पर मजबूत मानी जाती है. ये समुदाय नालंदा, गया, खगड़िया, नवादा और मुंगेर में प्रभावशाली माने जाते हैं. इन जातियों को नीतीश कुमार और जेडीयू का कोर वोटर माना जाता है. वहीं, सवर्ण बीजेपी का कोर वोटबैंक माने जाते हैं. मनोज भारती के सहारे जन सुराज अगर दलित वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल हो जाती है, तो इसका नुकसान भी एनडीए को उठाना पड़ सकता है.

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