चिराग पासवान के पास बड़ा मौका है. ये मौका है पिता राम विलास पासवान के अधूरे सपने को पूरा करने का. हर पिता चाहता है कि बेटा उसका सपना पूरा करे. चिराग पासवान भी अक्सर पिता के दिखाये रास्ते पर ही चलने की बात करते हैं, लेकिन देखा ये जा रहा है कि जूनियर पासवान के राजनीतिक मौसम विज्ञान के अध्ययन का दायरा काफी बड़ा है. मौजूदा रेस में वो तेजी से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसा भी नहीं कि चिराग पासवान अलग से किसी तरह की सोशल इंजीनियरिंग पर काम कर रहे हैं. लेकिन वो गठबंधन की राजनीति को बेहतर तरीके से समझने लगे हैं. कुछ हद तक अपने पिता से भी बेहतर समझ रखते हैं, कभी कभी ऐसा भी लगता है. वैसे ये बात खुद राम विलास पासवान ने ही बताई थी. असल में, बीजेपी के साथ चुनावी गठबंधन का आइडिया चिराग पासवान का ही था. क्योंकि, उससे पहले वो कांग्रेस के साथ हुआ करते थे. क्योंकि, उन पर सेक्युलर राजनीति हावी थी. और, एक बार तो वो बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग पर भी अड़ गये थे. ये 2005 की बात है. ये लालू यादव के M-Y फैक्टर वाली राजनीति पर उस दौर में सटीक निशाना था.
चिराग पासवान अपने पिता राम विलास से कदम थोड़ा आगे बढ़ाये, और अब तो लगता है कुछ आगे भी निकल चुके हैं. राम विलास पासवान अपनी बिरादरी की राजनीति जरूर करते थे, लेकिन वो जातीय राजनीति के बाहर भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते थे. चिराग पासवान भी ऐसा ही कर रहे हैं - तभी तो बिहार में बदलाव की बयार बहाने की कोशिश कर रहे प्रशांत किशोर भी उनकी तारीफ कर रहे हैं.
ये बड़ा मौका है, बिहार का मुख्यमंत्री बनने का. चिराग पासवान ने ऐसी कोई इच्छा तो नहीं जताई है, लेकिन उनकी पार्टी की तरफ से ये मांग बार बार उठाई जा रही है. और, चिराग पासवान बहाने से उसे खूब हवा भी दे रहे हैं. केंद्रीय मंत्री होते हुए भी अब वो बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं - और खास बात ये है कि चिराग पासवान किसी रिजर्व सीट से नहीं बल्कि सामान्य विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के मजबूत संकेत दे रहे हैं.
बिहार के राजनीतिक समीकरणों की वजह से जो मौजूदा हालात बन रहे हैं, उसमें चिराग पासवान हर तरह से फिट भी हो जाते हैं - लेकिन, ये सब तभी संभव है जब बीजेपी की तरफ से कोई एक्सचेंज ऑफर भी हो.
नीतीश कुमार का विकल्प बन सकते हैं
एक लंबे अर्से से सबको मालूम है कि बीजेपी नीतीश कुमार का विकल्प खोज रही है. बिहार बीजेपी के नेताओं में भी शिद्दत से ऐसी तलाश हुई है, लेकिन अब तक कोई नहीं मिल सका है. ले देकर एक सम्राट चौधरी मिले हैं. लेकिन, उनका भी महत्व बस इतना ही है कि वो नीतीश कुमार के राजनीतिक समीकरण लव-कुश कैटेगरी से आते हैं. पहले जरूर बड़ी बड़ी बातें करते थे, लेकिन अब तो वो हर मौके पर पीछे ही खड़े नजर आते हैं. हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी के मुंह से सुनी गई तारीफ भी अपवाद ही लगती है.
तेजस्वी के मुकाबले खड़े हो सकते हैं
ढलती उम्र के कारण नीतीश कुमार में अब वो बात नहीं रही. अनुभव जरूर बोलता है, लेकिन अब सिर्फ अनुभव से काम नहीं चलने वाला. रूटीन के कामकाज और रोजमर्रा के राजनीतिक दांव-पेच भी सुलझाने जरूरी होते हैं. कई मौकों पर नीतीश कुमार ऐसे पेश आये हैं, जिनसे ये शक और भी गहरा हो जाता है.
चिराग पासवान की एक खासियत ये भी है कि वो तेजस्वी यादव के करीब करीब हमउम्र हैं. अगड़े पिछड़े दोनों खांचे में वो फिट भी हो जाते हैं. युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं, और 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' मुहिम की वजह से उनको एक्स्ट्रा माइलेज भी मिल रहा है.
तेजस्वी यादव के प्रभाव और लोकप्रियता को एनडीए की तरफ से कोई टक्कर देने वाला है, तो वो सिर्फ चिराग पासवान ही नजर आते हैं.
लोकप्रियता के पैमाने अभी वो तेजस्वी यादव से काफी पीछे जरूर हैं, लेकिन नीतीश कुमार ही कहां आगे हैं. लेकिन, सम्राट चौधरी से तो चिराग पासवान आगे हैं ही. इंडिया टुडे सीवोटर सर्वे में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता जहां 36.9 फीसदी आंकी गई है, चिराग पासवान को 10.6 फीसदी लोग ही मुख्यमंत्री पद का पसंदीदा चेहरा मानते हैं. अगर नीतीश कुमार की 18.4 फीसदी लोकप्रियता से तुलना करें तो चिराग पासवान के पक्ष में खड़े लोग कम भी नहीं लगते.
तेजस्वी यादव की लोकप्रियता की वजह तो 2020 से ही उनका मुख्यमंत्री पद की रेस में होना भी है, जबकि चिराग पासवान तो अभी सिर्फ कयासों का हिस्सा भर बने हैं. अभी तो ये सिर्फ चर्चा ही है कि वो विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं.
वैकेंसी तो बहुत पहले से ही है
चिराग पासवान भले कहते फिरें कि बिहार में मुख्यमंत्री की कोई वैकेंसी नहीं है. लेकिन, ये महज एक राजनीतिक बयान है. ऐसी बातें, वो भले ही नीतीश कुमार से मुख्यमंत्री आवास जाकर मुलाकात के बाद कहें, या कहीं और जाकर. समझना मुश्किल भी नहीं है.
कहने की बात और है, लेकिन ये चिराग पासवान भी जानते हैं कि बीजेपी के पास भी कोई रास्ता नहीं है, इसलिए नीतीश कुमार के पीछे खड़ी है. केंद्र में भी सपोर्ट की जरूरत है - लेकिन सच तो ये है कि बीजेपी भी नीतीश कुमार से वैसे ही पीछा छुड़ाना चाहती है, जैसे लालू यादव चाहते थे.
बीजेपी ने हिमंत बिस्वा सरमा और एकनाथ शिंदे को मौका देकर ये तो साफ कर ही दिया है कि चिराग पासवान से भी उसे कोई दिक्कत नहीं होने वाली है. ये बात अलग है कि एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाये जाने की परिस्थितियां अलग थीं.
चिराग पासवान 2020 के बिहार चुनाव में अपना कमाल दिखा चुके हैं, और बर्बाद होने से आबाद होने तक पूरी निष्ठा से मोदी के हनुमान बने हुए हैं. मजबूरी भी है, लेकिन राजनीति चलती भी तो ऐसे ही है - और जब बड़ा सपना पूरा हो रहा हो, तो क्या बड़ी कुर्बानी नहीं दी जा सकती.
हो सकता है, बीजेपी मुख्यमंत्री बनाने के लिए चिराग पासवान के सामने मुश्किल टास्क रख दे. और अगर मुख्यमंत्री बनने के लिए बीजेपी में पार्टी का विलय भी करना पड़े तो दिक्कत क्या है? अगर बीजेपी तैयार न हो, तो क्या उसे रोकने के लिए आरजेडी-कांग्रेस, और बदलाव के लिए प्रशांत किशोर एक बार चिराग पासवान के समर्थन के बारे में नहीं सोच सकते. थोड़ा मुश्किल हो सकता है, लेकिन मुमकिन भी है.