तेजस्वी यादव अभी बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. अब तक दो बार वो बिहार के डिप्टी सीएम रह चुके हैं. ये मौका उनको तब मिला जब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ महागठबंधन के नेता हुआ करते थे. पहली बार 2015 में, और दूसरी बार अगस्त, 2022 में. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नीतीश कुमार फिर से एनडीए में लौट गये, और तब से लेकर अभी तक वो जब भी मौका मिलता है, ये दोहराना नहीं भूलते कि गलती हो गई थी, अब नहीं होगी और अब वो कहीं नहीं जाएंगे.
लेकिन, महागठबंधन का दरवाजा अभी बंद नहीं हुआ है. आरजेडी नेता लालू यादव कह चुके हैं कि दरवाजा हमेशा खुला है. लोकसभा चुनाव तक तेजस्वी यादव इस बात का पूरा ख्याल रखते थे कि नीतीश कुमार के खिलाफ कभी उनके मुंह से कोई विवादित बात न निकले. एक लिहाज तो दिखता है, लेकिन अब पहले वाली बात नहीं रही.
काफी दिनों से तेजस्वी यादव का आरोप है, 'बिहार में कुछ रिटायर अधिकारी और चंद नेता सरकार चला रहे हैं.' कानून-व्यवस्था से लेकर अलग अलग मुद्दों पर तेजस्वी यादव बीजेपी-जेडीयू सरकार को घेरते रहने वाले तेजस्वी यादव नाबालिग रेप पीड़ित के परिवार से भी मिलने गये थे. तेजस्वी यादव ने कहा है, मैं सरकार से मांग करता हूं कि स्पीडी ट्रायल कर दोषी पर अविलंब सरकार कार्रवाई करें. बिहार के मुजफ्फरपुर से पटना के PMCH अस्पताल में रेफर की गई नाबालिग रेप पीड़ित की समय से इलाज न मिलने के कारण मौत हो गई थी.
अब लालू परिवार की तरफ से नीतीश कुमार की सेहत पर सवाल उठाये जाने लगे हैं. और वो भी बार बार. राबड़ी देवी तो यहां तक कह चुकी हैं कि जब कुछ नहीं हो पा रहा है तो बेटे निशांत कुमार को ही मुख्यमंत्री बना दें. अव्वल तो तेजस्वी यादव हमेशा ही जन सुराज पार्टी नेता प्रशांत किशोर के निशाने पर ही रहते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के मामले में दोनों का रुख एक जैसा ही नजर आता है.
अभी से ठीक पहले जब नीतीश कुमार महागठबंधन में थे, लालू यादव की तरफ से तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करने का खूब दबाव बनाया गया. कई आरजेडी नेताओं की तरफ से भी ऐसी मांग हुआ करती थी. और, दबाव भी बनाने की कोशिश होती रही. एक बार तो दबाव में आकर नीतीश कुमार ने बोल भी दिया था कि आने वाले चुनाव में नेतृत्व तेजस्वी यादव के जिम्मे ही रहेगा.
जब नीतीश कुमार को लगा कि कोई रास्ता नहीं बचा है, तो पाला बदल कर फिर से एनडीए में लौट आये - और पांच साल बाद तेजस्वी यादव एक बार फिर आने वाले बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को चैलेंज करने की तैयारी में जुटे हुए हैं.
अपनी बिरादरी के जनाधार के साथ साथ लालू यादव के M-Y फैक्टर तेजस्वी यादव के पक्ष में तो हैं ही, हाल में हुए सर्वे में मुख्यमंत्री पद के सबसे पसंदीदा चेहरे के रूप में सामने आ रहे हैं - लेकिन, पेंच वहीं फंसा हुआ है कि क्या सर्वे में दर्ज हो रही लोकप्रियता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा पाएगी?
क्या कह रहा है बिहार का सर्वे
इंडिया टुडे-सी वोटर सर्वे के मुताबिक, तेजस्वी यादव काफी समय से मुख्यमंत्री पद के लिए बिहार के लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं - और इस मामले में, कम से कम सर्वे में, तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को काफी पीछे छोड़ दिया है.
सर्वे के हिसाब से देखें, तो तेजस्वी यादव को युवा, पिछड़े और मुस्लिम वोटर काफी पसंद कर रहे हैं. फरवरी में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता 40.6 फीसदी दर्ज की गई थी, जो अप्रैल में घटकर 35.5 फीसदी, लेकिन मई में थोड़ा इजाफा के साथ 36.9 पहुंच चुकी है.
नीतीश कुमार की लोकप्रियता थोड़े उतार चढ़ाव के साथ स्थिर बनी हुई है, लेकिन तेजस्वी यादव के मुकाबले काफी कम पाई गई है. फरवरी के सर्वे में नीतीश कुमार की लोकप्रियता 18.4 थी, लेकिन अप्रैल में ये 15.4 फीसदी पहुंच गई थी. मई में हुए सर्वे में फिर से 18.4 फीसदी लोग नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पसंद करने लगे हैं.
सर्वे में मुख्यमंत्री पद के और भी दावेदार उभर कर सामने आये हैं, लेकिन तेजस्वी यादव और उनके बीच में काफी गैप पाया गया है. तेजस्वी यादव के पक्ष में एक बात और है कि बीजेपी के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी को सर्वे में जो जगह मिल रही है, वो प्रशांत किशोर और चिराग पासवान के बाद मिली है.
तेजस्वी यादव की राह में मुश्किलें भी कई हैं
2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन को सबसे ज्यादा 75 सीटें मिली थीं. तब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू 43 सीटों पर पहुंच गई थी, और बीजेपी को 74 सीटें मिली थीं.
बिहार विधानसभा में अभी की स्थिति देखी जाये तो आरजेडी के पास सबसे ज्यादा 80 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के पास 77 और जेडीयू के पास 45 हैं. 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा में बहुमत का नंबर 122 होता है.
तेजस्वी यादव के पक्ष में सबसे बड़ी बात फिलहाल लालू यादव की बिहार में मौजूदगी है. बशर्ते, ये चुनाव तक यूं ही बनी रहे. 2020 के चुनाव में में वो रांची जेल में थे.
1. तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी समस्या तो घर में ही खड़ी हो गई है. घर में नये मेहमान के आने से खुशी का माहौल तो है, लेकिन तेज प्रताप को परिवार से बेदखल किये जाने का असर तो होगा ही.
हो सकता है, तेज प्रताप प्रकरण का चुनावों में कोई असर न पड़े, या तब तक माफी के साथ ये मामला खत्म भी कर दिया जाये, लेकिन अभी तो ये समस्या बनी ही हुई है.
2. एक बड़ी समस्या कांग्रेस का सही से साथ न देना, और राहुल गांधी का आरजेडी के वोट बैंक को कांग्रेस के पक्ष में करने की कवायद भी है.
कई दौर की बात और मुलाकात के बावजूद कांग्रेस नेता तेजस्वी यादव को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाये जाने पर चुप्पी साधे हुए हैं.
3. यादव के साथ मुस्लिम वोट लालू यादव की राजनीति के बड़े आधार रहे हैं, AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी का असर तो 2020 में देखा ही जा चुका है, इस बार कांग्रेस के साथ साथ प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की भी मुस्लिम वोटों पर नजर टिकी हुई है.
4. प्रशांत किशोर लंबे समय से तेजस्वी यादव के खिलाफ कैंपेन चला रहे हैं, और लोगों को तेजस्वी यादव को मौका न देने के लिए अलग अलग तरीके से समझाते आ रहे हैं.
2024 के उपचुनावों में वो आरजेडी को डैमेज तो नहीं कर पाये, लेकिन जिस तरह चार सीटों पर वोट शेयर 10 फीसदी तक हासिल किया है, तेजस्वी यादव के लिए संकेत तो खतरनाक ही है.
5. तेजस्वी यादव भले ही नीतीश कुमार से लोकप्रियता में आगे चल रहे हों, लेकिन उनके पीछे बीजेपी मजबूती से डटी हुई है - फर्ज कीजिये, ऑपरेशन सिंदूर का चुनावों में असर हुआ तो पनघट की डगर तो कठिन हो ही सकती है.