
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नगदी बरामद हुई थी. जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में करने के साथ ही जांच के लिए तीन जजों का पैनल बना दिया था. पैनल की जांच रिपोर्ट मिलने के बाद मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है. 'इन हाउस प्रॉसीजर' के तहत लिखे गए इस पत्र के साथ पैनल की जांच रिपोर्ट भी भेजी गई है. ऐसा माना जा रहा है कि सीजेआई ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की है.
जस्टिस वर्मा से जुड़े मामले की जांच करने वाले पैनल में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जीएस संधावालिया, कर्नाटक हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे. सूत्रों के मुताबिक समिति की रिपोर्ट के आधार पर सीजेआई ने न्यायमूर्ति वर्मा से इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के लिए कहा था. न्यायमूर्ति वर्मा ने सीजेआई की सलाह पर इन दोनों विकल्पों में से किसी पर भी सहमत नहीं हुए. इसके बाद ही सीजेआई ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री इन हाउस प्रॉसीजर के तहत पत्र लिखा.
इन हाउस प्रॉसीजर क्या
इन हाउस प्रॉसीजर सुप्रीम कोर्ट की ओर सी रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति एएम भट्टाचार्य और एडीजे एक्स बनाम रजिस्ट्रार जनरल, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जैसे मामलों के बाद ततय प्रक्रिया है. एक समिति ने 1997 में इन-हाउस प्रॉसीजर की रूपरेखा तैयार की थी, जिसे 1999 में सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने संशोधित रूप में स्वीकार कर लिया. इस प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त तीन न्यायाधीशों की एक समिति आरोपों की जांच करती रिपोर्ट देती है.
हाईकोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया क्या
हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति की ओर से की जाती है और उन्हें हटाने का अधिकार भी राष्ट्रपति को ही है. संविधान के आर्टिकल 124 (4) (5), 217 और 218 में इसका प्रावधान है. हाईकोर्ट के किसी जज को पद का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, मानसिक या शारीरिक रूप से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ होने की स्थिति में ही हटाया जा सकता है. हाईकोर्ट के किसी भी जज को पद से हटाने के लिए संसद से महाभियोग प्रस्ताव पारित होने के बाद ही हटाया जा सकता है.
जज को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया
हाईकोर्ट के किसी जज को पद से हटाने के लिए महाभियोग की भी एक तय प्रक्रिया है. महाभियोग से संबंधित प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा, दोनों में से किसी भी सदन में लाया जा सकता है. इसका दोनों सदनों से एक ही सत्र में पारित होना जरूरी होता है. महाभियोग प्रस्ताव पेश होने से लेकर राष्ट्रपति की मंजूरी तक, एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है. इसे सबसे पहले संसद में पेश करना पड़ता है. यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किए जाने पर कम से कम सौ, राज्यसभा में पेश किए जाने पर कम से कम 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी हैं.
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संसद में जज को पद से हटाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिए जाने के बाद सीजेआई की अगुवाई में तीन सदस्यीय कमेटी बनाई जाती है. इस कमेटी में एक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, एक वरिष्ठ जज होते हैं. यह समिति जज के खिलाफ आरोप की जांच कर अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है. समिति की जांच रिपोर्ट में अगर जज के खिलाफ आरोप सही पाए जाते हैं, जज को हटाने का प्रस्ताव संसद में बहस और मतदान के लिए रखा जाता है. जज को हटाने के लिए जरूरी है कि संबंधित प्रस्ताव दो-तिहाई बहुमत से पारित हो.
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आखिरी चरण: राष्ट्रपति की मंजूरी
संसद में प्रस्ताव पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के साथ ही हाईकोर्ट के जज को पद से हटा दिया जाता है. महाभियोग प्रस्ताव के जरिये जज को पद से हटाए जाने की बात करें तो ऐसा कभी हुआ नहीं है. जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के प्रयास तो हुए, लेकिन महाभियोग आया नहीं. इसकी प्रक्रिया बहुत कठिन और लंबी होी है.
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