बिहार चुनाव में अभी पांच महीने का समय बाकी है, लेकिन सियासी सरगर्मियां बढ़ने लगी हैं. राजनीतिक दल गठबंधनों के कील-कांटे दूर करने, चुस्त-दुरुस्त करने में जुटे हैं. एक दिन पहले ही केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने पटना के एक अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर सीएम नीतीश कुमार से मुलाकात की. यह मुलाकात इसलिए अहम मानी जा रही है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग ने नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) की सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए थे. हाल के दिनों में नीतीश कुमार और चिराग के संबंधों में नरमी देखने को मिली है.
पिछले विधानसभा चुनाव से अब तक न सिर्फ दोनों नेताओं के संबंधों में, बल्कि गठबंधनों की तस्वीर में भी बहुत बदलाव आ चुका है. तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में शामिल रहे दल अब विपक्षी महागठबंधन के खेमे से ताल ठोकते नजर आ रहे हैं. वहीं, तीसरा गठबंधन बनाने की कोशिशों में जुटे नजर आए नेता अब एनडीए के खेमे में हैं. 2020 के बिहार चुनाव से 2025 के बिहार चुनाव तक कितनी बदल गई है गठबंधनों की तस्वीर? बिहार सीरीज में आज बात इसी की.
चिराग की पार्टी थी जेडीयू के खिलाफ, अब है साथ
बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी. चिराग ने एनडीए में होने के बावजूद तब जेडीयू कोटे की सीटों पर उसके खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए थे. इस बार के चुनाव में चिराग की न वह पार्टी रही, ना ही वह तेवर. पशुपति पारस की बगावत के बाद पार्टी दो धड़ों में बंट गई. चिराग को लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) नाम से नई पार्टी बनाई और अब वह एनडीए में हैं. नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते भी सुधरे हैं.
चिराग के जेडीयू विरोध की खिलाफत करने वाले पारस दूसरे खेमे में
बिहार चुनाव में जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने के चिराग के फैसले को आधार बनाकर उनके चाचा पशुपति पारस ने पार्टी पर ही कब्जा कर लिया था. चिराग को उनके ही पिता की बनाई पार्टी से बाहर कर पशुपति ने खुद को अध्यक्ष घोषित कर दिया और केंद्र की एनडीए सरकार में बतौर मंत्री शामिल हो गए थे. नाम निशान की लड़ाई चुनाव आयोग पहुंची,
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चिराग और चाचा, दोनों को ही नई पार्टी बनानी पड़ी थी. पिछले बिहार चुनाव में चिराग के साथ रहे, बाद में चिराग के जेडीयू विरोधी रुख की खिलाफत कर बगावत करने वाले पशुपति पारस इस बार एनडीए के खिलाफ ताल ठोकते नजर आएंगे. पशुपति पारस की पार्टी का राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन में शामिल होना तय माना जा रहा है. हालांकि, इसका आधिकारिक ऐलान अभी नहीं हुआ है.
मुकेश सहनी भी इस बार दूसरे गोल में
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का नाम भी उन दलों की लिस्ट में हैं, जिनका 2020 के बिहार चुनाव में गठबंधन अलग था और इस बार अलग. मुकेश सहनी की अगुवाई वाली वीआईपी ने 2020 में सीट शेयरिंग पर खटपट के बाद पाला बदल लिया था. तब मुकेश सहनी, चिराग पासवान की प्रेस कॉन्फ्रेंस से उठकर चले गए थे और एनडीए का दामन थाम लिया था. वीआईपी ने 2020 का चुनाव एनडीए के घटक दल के रूप में लड़ा. इस बार मुकेश सहनी महागठबंधन की सरकार बनवाने, तेजस्वी को सीएम बनाने की बात करते नजर आ रहे हैं.
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उपेंद्र कुशवाहा थे ओवैसी के साथ
उपेंद्र कुशवाहा पिछले बिहार चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी के साथ थे. तब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के प्रमुख रहे उपेंद्र कुशवाहा ने असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. उपेंद्र कुशवाहा इस बार अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के साथ चुनाव मैदान में उतरने को तैयार हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी अब एनडीए में है और वह खुद केंद्र सरकार में मंत्री हैं.
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मांझी केवल नीतीश के साथ थे, इस बार BJP से बात
केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी की अगुवाई वाली हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) की बात करें तो पिछले चुनाव से ठीक पहले उनकी पार्टी एनडीए में लौटी थी. मांझी की एनडीए में वापसी की पटकथा नीतीश कुमार ने ही लिखी थी. मांझी को साधे रखने की जिम्मेदारी भी नीतीश की ही थी. नीतीश ने मांझी की पार्टी को जेडीयू के कोटे से सीटें दी थीं. इस बार तस्वीर बदली हुई नजर आ रही है. केंद्रीय मंत्री मांझी इस बार 40 सीटों के लिए दावेदारी कर रहे हैं और इसे लेकर बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मुलाकातें करते नजर आ रहे हैं.