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बिहार की जाति आधारित पार्टियां... कितनी है चिराग पासवान-जीतनराम मांझी-मुकेश सहनी और उपेंद्र कुशवाहा की ताकत

बिहार की राजनीति में जाति का बड़ा ही महत्व है. सूबे में जाति आधारित पार्टियों की भी भरमार है. जातीय राजनीति की पिच पर पान समाज के आईपी गुप्ता सबसे नए प्लेयर हैं. लेकिन कई पुरानी पार्टियां भी पहले से ही मैदान में हैं.

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चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, मुकेश सहनी, उपेंद्र कुशवाहा
चिराग पासवान, जीतनराम मांझी, मुकेश सहनी, उपेंद्र कुशवाहा

बिहार को लेकर यह धारणा रही है कि यहां जाति के बिना राजनीति नहीं हो सकती. चुनाव  विधानसभा चुनाव के महाने पर खड़े बिहार की राजनीति पर चर्चा हो तो जाति की बात भी लाजमी है. बिहार के सियासी दरिया में बदलाव के दावों के साथ जन सुराज पार्टी की नाव लेकर उतरे चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर यानी पीके भी जाति को समाज की सच्चाई बताते हुए यह कह चुके हैं कि जो भी नेता होगा, वह किसी न किसी जाति से तो होगा ही.

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बिहार की राजनीति में जाति कितनी अहम हैं, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पार्टियां टिकट बंटवारे से पहले विधानसभा स्तर पर जातियों की तादाद, उनकी मित्र और विरोधी जातियों की संख्या के विश्लेषण में जुट गई हैं. बिहार में विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की राजनीतिक बुनियाद एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण को माना जाता है.

सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवाई कर रही जनता दल (यूनाइटेड) हो या सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), सुशासन और विकास की राजनीति करने वाले इन दलों के भी अपने जातीय आधार हैं.  राजनीति और जाति के इस कॉकटेल में बात जाति आधारित पार्टियों की भी होगी. पान समाज के नेता आईपी गुप्ता की इंडियन इंकलाब पार्टी सबसे नई प्लेयर है, लेकिन कई पार्टियां और नेता जाति आधारित राजनीति की पिच पर पहले से ही मजबूत मौजूदगी दर्ज कराते आए हैं. बिहार सीरीज में आज बात ऐसे ही नेताओं और पार्टियों की.

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चिराग पासवान की पार्टी का बेस दलित वोटबैंक

चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की सियासत का आधार शुरुआत से ही दलित वोटबैंक रहा है. चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान की बनाई लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) बिहार में दलित राजनीति की अगुवा मानी जाती थी. बाद में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने दलित जातियों को दो भाग- दलित और महादलित में बांट दिया था. सीएम नीतीश ने पासवान परिवार के कोर वोटबैंक पासवान यानी दुसाध जाति को छोड़कर बाकी 21 दलित जातियों को महादलित का दर्जा दे दिया था. तब रामविलास पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी एनडीए में शामिल नहीं थी.

दलित वर्ग यानी पासवान की बात करें तो 2023 की जातिगत जनगणना के मुताबिक बिहार में इस वर्ग की आबादी 5.31 फीसदी है. संख्याबल के लिहाज से देखें तो एलजेपीआर का यह कोर वोटबैंक अकेले दम जीत दिलाने या बिहार की सत्ता तक पहुंचने के लिए भले ही नाकाफी लगे, लेकिन किसी दूसरे दल के साथ जाने की स्थिति में यह औरों की हार-जीत सुनिश्चित जरूर कर सकता है. शायद यही वजह है कि एनडीए हो या महागठबंधन, चिराग की पार्टी के साथ गठबंधन के लिए दोनों ही बांहें फैलाए नजर आते हैं.

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फिलहाल, चिराग पासवान की पार्टी बिहार में जेडीयू की अगुवाई वाले सत्ताधारी एनडीए का घटक है. चिराग पासवान लगातार अपनी  पार्टी का वोटबेस बढ़ाने की कवायद में जुटे नजर आ रहे हैं. चिराग की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी हैं, जो सामान्य वर्ग से आते हैं. 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' जैसे अभियान भी चिराग की सर्वसमाज, खासकर युवा वर्ग के बीच अपनी सियासी जमीन बनाने की कवायद से जोड़कर ही देखे जाते हैं. बिहार विधानसभा की 243 में से 38 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.

जीतनराम मांझी की पार्टी का कोर वोटर मुसहर

जेडीयू से अलग होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (लोकतांत्रिक) नाम से 2015 में अपनी पार्टी बनाई थी. जीतनराम मांझी की पार्टी एनडीए में शामिल है. गया से सांसद मांझी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री हैं, वहीं उनके बेटे संतोष सुमन नीतीश कुमार की सरकार में. जीतनराम मांझी मुसहर जाति से आते हैं, जो महादलित वर्ग में आती है.

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महादलित वर्ग की बिहार की कुल आबादी में हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी है. मांझी की पार्टी महादलित वोटबैंक पर दावा करती है. हालांकि, जीतनराम मांझी की पार्टी का कोर वोटबैंक मुसहर जाति को माना जाता है. बिहार की कुल आबादी में मुसहर जाति का हिस्सा 3.09 फीसदी है. मुसहर समाज की आबादी गया और जहानाबाद जिले में अधिक है. सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार में भी मांझी समाज करीब दर्जनभर सीटों पर जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में है.

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निषाद वोटबैंक पर मुकेश सहनी की पार्टी का दावा

मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) विपक्षी महागठबंधन के खेमे में है. वीआईपी का कोर वोटबैंक सहनी समाज को माना जाता है, जिसकी आबादी बिहार की जातिगत जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2.61 फीसदी है. हालांकि, वीआईपी निषाद वोटबैंक पर दावा करती है. निषाद जाति में सहनी के साथ ही अन्य उपजातियों को भी जोड़ लें तो समाज की कुल आबादी 9.65 फीसदी पहुंच जाती है.

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निषाद जाति में सहनी यानी मल्लाह के साथ ही अमात, केवट, केवर्त, कोल, गोड़ी छाबी, गोंड, गंगई (गणेश), गंगोता, घटवार, चायं, तियर, तुरहा, घिमर, नोनिया, बिंद, बेलदार, मझवार, मोरियारी और वनपर उपजातियां आती हैं. निषाद वोटबैंक दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, वैशाली, खगड़िया जिले में जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाने की स्थिति में है. 

उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी कितनी ताकतवर

उपेंद्र कुशवाहा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मोर्चा (आरलएम) एनडीए का घटक है, जिसका कोर वोटर कोइरी माना जाता है. केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा खुद इसी जाति से आते हैं. बिहार में कोइरी जाति की आबादी 4.21 फीसदी है. महत्वपूर्ण यह है कि कोइरी वर्ग को साथ लेकर नीतीश कुमार ने लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण गढ़ा था.

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बिहार की सियासत में जेडीयू और एनडीए की सफलता के पीछे नीतीश कुमार के लव-कुश समीकरण की भूमिका अहम मानी जाती है. पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में लालू यादव की अगुवाई वाली आरजेडी ने तीन सीटों पर कोइरी उम्मीदवार उतारे, जिनमें से एक को जीत मिली. आरजेडी ने कोइरी चेहरे अभय कुशवाहा को लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल का नेता बना दिया.

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सियासी दलों के कोइरी प्रेम को इस बात से भी समझा जा सकता है कि उपेंद्र कुशवाहा को लोकसभा चुनाव में हार के बावजूद अपने कोटे से राज्यसभा भेजकर बीजेपी ने केंद्र में मंत्री बनाया. कोइरी वर्ग से ही आने वाले सम्राट चौधरी बीजेपी कोटे से नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम हैं. कोइरी समाज की बात करें तो औरंगाबाद, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, समस्तीपुर, खगड़िया, सीतामढ़ी, पूर्णिया, जमुई, नालंदा और आरा जिले में इस वर्ग की आबादी अच्छी खासी है.

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